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परदा-बे-परदा / ओमप्रकाश सारस्वत
Kavita Kosh से
कहते हैं
आदिमवासी बेपरदा था
या फिर
जहां-तहां के निज अँगों को
कुछ हिस्सों को
पत्रावरणों या
बल्कल से ढक लेता था
मौका-बेमौका
उसकी गरज पड़े का
यह परदा था
पर आज हम
सभ्य होने के साथ-साथ
अति आधुनिक भी हैं
हम सुधरे हैं
हम धरा से
सूरज तक की दूरी तक
उससे आगे जा पहुँचे हैं
हमने कई चीज़ें जोड़ीं
हमने परदे किए ईजाद
नये परदे
हमारे घर आओ
देखो
खिड़की प्रत्येक कील पर
ठीक जमा है
स्वयं सजा है
और यहाँ-वहाँ तो
उसकी क्या है ज़रूरत ?
पर हाँ
घर तो बेपरदा है
बहुत बुरा लगता है