परदेस चला जाये जो दिलबर तो ग़ज़ल कहिये
और ज़ेह्न हो यादों से मुअत्तर तो ग़ज़ल कहिये
कब जाने सिमट जाये वो जो साया है बेग़ाना
जब अपना ही साया हो बराबर तो ग़ज़ल कहिये
दिल ही में न हो दर्द तो क्या ख़ाक ग़ज़ल होगी
आँखों में हो अश्कों का समंदर तो ग़ज़ल कजिये
हम जिस को भुलाने के लिये नींद में खो जायें
आये वही ख़्वाबों में जो अक्सर तो ग़ज़ल कहिये
फ़ुर्क़त के अँधेरों से निकलने के लिये दिल का
हर गोशा हो अश्कों से मुनव्वर तो ग़ज़ल कहिये
ओझल जो नज़र से रहे ताउम्र वही हमदम
जब सामने आये दम—ए—आख़िर तो ग़ज़ल कहिये
अपना जिसे समझे थे उस यार की बातों से
जब चोट अचानक लगे दिल पर तो ग़ज़ल कहिये
क्या गीत जनम लेंगे झिलमिल से सितारों की
ख़ुद चाँद उतर आये ज़मीं पर तो ग़ज़ल कहिये
अब तक के सफ़र में तो फ़क़त धूप ही थी ‘साग़र’!
साया कहीं मिल जाये जो पल भर तो ग़ज़ल कहिये