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परनाले की ईंट लगी छत पर देखो / विजय किशोर मानव

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परनाले की ईंट लगी छत पर देखो।
नंगनाच होता है आठ पहर देखो॥

महल कांच के हैं जिनके ऊंचे-ऊंचे,
उनके हाथ बिक गए सब पत्थर देखो।

नमक-तेल-लकड़ी, ईमान-धरम क्या,
लगने लगी आग इनमें अक्सर देखो।

बाहर से सुलगते मुट्ठियां ताने हैं,
बर्फ़ जमी मिलती उनके भीतर देखो।

पांव तले का कांच झाड़कर ख़ुश क्यों हो
लटकी है तलवार अभी सर पर देखो।

पानी नहीं, बरसाते हैं ओले बादल
ज़ख़्म हो गए हैं, फूलों के सर देखो।