परभु मोरा बसै बिदेस, कि दूर देस बसै नै रे / अंगिका लोकगीत
गर्भवती होने पर इस गीत की नायिका घबरा रही है। उसका प्रियतम विदेश में है, सास नैहर में और ननद अपनी ससुराल में। घर में नादान छोटा देवर है, जिससे उसकी सेवा संभव नहीं और न वह उसकी इस अवस्था को समझ ही सकता है। वह रास्ता चलते हुए बटोहियों से अपने प्रियतम के पास संवाद भेजती है। इधर जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा है, वैसे वैसे गर्भ के लक्षण प्रकट हो रहे हैं। सास समय पर आ जाती है और वह सब कुछ सँभाल लेती है। ऐसी अवस्था में अकेले रहने पर स्त्री का बेचैन होना स्वाभाविक है।
इस गीत में बटोहियों द्वारा संवाद भेजने से प्राचीन काल की संचार-व्यवस्था की कमी और सार्थ द्वारा भेजे जाने वाले संवाद की प्राचीन परिपाटी का संकेत परिलक्षित होता है।
परभु मोरा बसै बिदेस, कि दूर देस बसै न रे।
ललना रे, केकरा कहब दिल के बात, चढ़ल मास तेसर रे॥1॥
सासु मोरा बै नैहर, ननद सासुर बसै रे।
ललना रे, घर में देवर छै नादान, चढ़ल मास चारिम रे॥2॥
बाट बटोहिया से तहुँ मोरा भैया न रे।
ललना रे, लेने जाहो पिया के समाद<ref>संवाद</ref>, चढ़ल मास पाँचम रे॥3॥
जिया मोरा दग दग<ref>प्रतिध्वनिमूलक शब्द</ref> दगै<ref>बंदूक, तोप आदि का छूटना: जलना; धड़कना</ref>, कि तर तर<ref>तड़-तड़; प्रतिध्वनिमूलक शब्द</ref> तरकै<ref>तड़कना। फट की आवाज से फटना या टूटना</ref> रे।
ललना, खटरस<ref>छट प्रकार के स्वादों वाला। छह प्रकार के स्वाद-मीठा, नमकीन, कड़वा, तीता, कसैला और खट्टा</ref> कुछु न सोहाबै, चढ़ल मास छठम रे॥4॥
अन पानी कुछु न सोहाबै, कि जिअ डोल पात पात रे।
ललना रे, देह भेलै सरिसों के फूल, चढ़ल मास सातम रे॥5॥
गिन गिन मास असह दुख, सहब कतेक दिन रे।
ललना रे, केकरा कहब दिलबात, चढ़ल मास आठम रे॥6॥
के मोरा देवता मनाबथिन, दगरिन बोलाबथिन रे।
ललना रे, कौने करतै सँभार, चढ़ल मास नवम रे॥7॥
ससुर मोरा देवता मनाबथिन, दगरिन बोलाबथिन रे।
ललना रे, सासु मोरा करथिन सँभार, चढ़ल मास नवम रे॥8॥
चहुँ दिस भेल इँजोत, सरब सुख सागर रे।
ललना रे, चढ़तहिं मास जे दसम, होरिला जनम लेल रे॥9॥