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परमेसर नैं / गंगासागर शर्मा
Kavita Kosh से
परमेसर नैं म्हैं
सगळै ढूंढ्यो
पाणी, रेत अर पहाड़ां में
धोरां, नहरां अर जोहड़ां में
बारै-मांयनै
सगळै ढूंढ्यो
कठै कोनीं ढूंढ्यो म्हैं?
घर, बाखळ अर ओरां में
पण वो म्हनैं लाध्यो
फगत अर फगत
राजूड़ै में
जद उण गरीब मजूर म्हारी भुआ नैं
आपरै सूक्योड़ै सरीर रो
दियो एक यूनिट खून
उण बगत
म्हैं आखी धरती रो
सगळां सूं गरीब मिनख हो
अर राजूड़ो सगळां सूं अमीर
सांपड़तै भगवान!