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परम पद पाने के निकट / कुमार मुकुल

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हैदराबाद के पाश इलाके को जाती

सड़क के फुटपाथ पर

पड़ा था वह- दुबला, काला

बस एक चीकट टीशर्ट पहने


धूप बिखर रही थी वसंत पंचमी की

जिसकी रोशनी में

उसकी ठोड़ी पर रिस आया ख़ून

चमक रहा था जमा हुआ

लाल-काला, थक्का


शायद मुँह के बल गिरा था वह

पास ही सेब के दो टुकड़े

पड़े-पड़े उसका मुँह ताक रहे थे

किसी राहगीर ने फेंका होगा

उसे देख खा नहीं पाया होगा

घिन से


भिखमंगों से शहर की ख़राब होती

छवि के प्रति चिंतित

महानगर के मेयर

उसे ना जाने किस कोटि में रखेंगे

परमपद पाने के इतने निकट पहँचे

व्यक्ति को तीसरी बार

देख रहा था मैं


एक वह था

पटना गांधी मैदान से क्लेक्ट्रियट को

जाती सड़क पर

बुझ चुके अलाव पर सिर टिकाए पड़ा

उसके सिर के

एक ओर के बाल

सफ़ाचट हो चुके थे जलकर

नीम लोकतंत्र में

आसानी से मयस्सर

नीम बेहोशी में पड़ा था वह


या फिर पटना सीटीओ के पास

मरता वह व्यक्ति

जिसके बारे में बताया था सबसे पहले

राजस्थान पत्रिका के संवाददाता

प्रियरंजन भारती ने-

कि पानी भी

नहीं पी पा रहा था वह

उसकी साँस ही रुक गई थी पानी को

बाहर फेंकने की

कोशिश में।