Last modified on 19 जुलाई 2020, at 23:19

परवरिश में ही कोई कमी रह गयी / कैलाश झा 'किंकर'

परवरिश में ही कोई कमी रह गयी
ज़िन्दगी असलहे से जुड़ी रह गयी।

ईश, रब या ईसा आप जो भी कहें
उनकी रचना में क्यों गड़बड़ी रह गयी।

सिर्फ इन्सानियत की ज़रूरत अभी
रोशनी छिन गयी, तीरगी रह गयी।

इस चमन के लिए, हम-वतन के लिए
बस मुहब्बत की थोड़ी ख़ुशी रह गयी।

दिल की दूरी घटे तो पड़ोसी बढ़े
बात मेरी अभी तक दबी रह गयी।