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परवरिश / श्याम किशोर
Kavita Kosh से
बनाते-बनाते
तुमसे गिर गया था चुटकी भर आटा फ़र्श पर
उसे चींटियाँ अपने सिरों पर उठा ले गई हैं
खाते-खाते
तुम्हारे हाथ से छूट गया था एक टुकड़ा
उसे चूहा अपने बिल में खींच ले गया है
रोज़ जितना अंश छूट जाता है
तुम्हारी थाली में
वह भी बेकार नहीं जाता है
उसके बाद भी
जो बच रहता है
वह धरती में मिल जाता है
जितना लेती है
उससे कई गुना
वापस कर देती है हमें धरती ।