सतरहसै संवत लिखैत तेरह अधिकानो। समय मास आषाढ़ पक्ष उजियार बखानो॥
तिथि परिवा वुधवार गंग सर्वज्ञ अन्हाये। परशुराम तन तज्यो वास वैकुंठ सिधाये॥
भाव गओ द्वारिको, राज-रीति सहजै लटी।
ता दिन ते जग जान सब, माँझी की महिमा घटी॥3॥
सतरहसै संवत लिखैत तेरह अधिकानो। समय मास आषाढ़ पक्ष उजियार बखानो॥
तिथि परिवा वुधवार गंग सर्वज्ञ अन्हाये। परशुराम तन तज्यो वास वैकुंठ सिधाये॥
भाव गओ द्वारिको, राज-रीति सहजै लटी।
ता दिन ते जग जान सब, माँझी की महिमा घटी॥3॥