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परसाई से सुना था / जया पाठक श्रीनिवासन
Kavita Kosh से
(१)
वह लम्बी लम्बी डींगें हांकता था
अक्सर सब
सुनते थे उसकी बात
उसकी बातों में उन सबके मन का
भेड़िया झांकता था
अक्सर जब वो बोलता था
सब भेद बनकर
बैठ जाते थे, सुनने
मैंने देखा -
कई बार बोलते हुए
उसके मुंह से लार टपकती थी
(२)
सभी भेड़ों के सीने में एक कील चुभी हुयी थी
भेड़िया बोलता रहा
कीलों को गड़ाता,
चुभन बढ़ाता हुआ
सहसा, ग़दर सा मचा
भेड़ों की भीड़ एक भेड़ पर ही झपट पड़ी
वह भेड़,
जो चैन से सो रही थी -
कील निकाल कर ,
मार डाली गयी
भेड़िया मुस्कुराता रहा देर तक