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परिवरतन / मुनेश्वर ‘शमन’

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अब बीत गेलय हे उमसल तपल-तपल-सन दिन।
बगिया में सीतल-मजगर पुरबइया चललय।।

सहमल-अकुलल चिरियन सब चह-चह चहक रहल।
टहनी पर कुम्हलल कलियन मह-मह महक रहल।
भीतर-बाहर लहरइलय फिन मादक झोंका।
बहियाँ फैइलयने घास-पात-लत बहक रहलय।
गरमी आउ हहरावइत अन्हड़ तो गेलय ठहर।
रिमझिम फुहिया संग नयकी बदरी घिर अइलय।।

पुलकल-पुलकुल जीवन मिट गेलय उदासी हे।
दहलइलय जमल घुटन के कड़गर छाती हे।
जियरा के गहराबइत उखबिखी अलोप गेलय।
उल्लास-हास के घर-घर लगल बराती हे।
मुद्दत से जागइत दरद मधुर थपकी पइलक
चिलचिलवइत रउद के बाद छाँह रे छितरइलय।।

बद्लल-बद्लल मउसम में हरसित जन-गन-मन।
हर कंठ-कंठ गुन-गुन गावे हे मस्त-मगन।
केतना सुखदायक-वरदायक सोहान घड़ी।
बदलल छन में मिलजुल के करल जाय सिरजन।
ई प्रानवान पल बीतय नञ बेरथे कहीं ,
हिलमिल के सींचऽ आसा के, जे उग अइलय।।