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परिवर्तन का कोरस / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
शब्द, अर्थ जब मिलकर आते हैं
एक-एक ग्यारह हो जाते हैं
धुन का हावी होने वाला पन
परदे के पीछे सो जाता है
तब खुलता है अर्थ ज़िन्दगी का
सिंहासन अलाव हो जाता है
हाथों में संकल्प उगाते हैं
शब्द, अर्थ जब मिलकर आते हैं
सन्नाटे की परतें खुलती हैं
नींद टूटती है सम्मोहन की
दुनिया खुली क़िताब नज़र आती
मुट्ठी में ताक़त आती, तन की
परिवर्तन का कोरस गाते हैं
एक-एक ग्यारह हो जाते हैं