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परिवर्त्तन / संजय अलंग
Kavita Kosh से
सुमि !
इस बार आओ
दिखाऊँगा मैं तुम्हें
कि बगिया में अब हमारी
फूल खिलें हैं
संगीनें अब यहाँ नहीं उगती
हमारे आँगन वाले पेड़ पर
अब चिड़ियों के चहचाहट है
उस पर पड़ोस के बच्चे
अब पत्थर नहीं मारते
हमारे सामने वाले निक्कड़ पर
बच्चे अब, पिट्ठुल खेलते हैं
वहाँ अब धर्म, जातियों, भाषा, क्षेत्र, नस्ल का
रक्त नहीं बिखरता
आओ सुमि !
इस बार मैं तुम्हें दिखाऊँगा
कि हम ठोकर खाकर भी
सम्हल सकते हैं
हम फूल उगा सकते हैं
हम बसेरे बसा सकते हैं
हम खेल सकते हैं
हम मात्र नक्शा नहीं
एक राष्ट्र बना सकते हैं