एकलव्य बन जाओ अभी, 
यह परीक्षा की घड़ी...
मत कहो गुरु ने पढ़ाया था नहीं, 
मत कहो मुझको सिखाया था नहीं, 
ज्ञान पान के लिए दोष औरों पर मढ़ा जाता नहीं, 
उपदेश परीक्षा की घड़ी॥1॥
गर बढ़ेंगे पैर तो रास्ता भी बनता जायेगा, 
जो बढ़ेगा बिन रुके, मंजिल ज़रूर पा जायेगा, 
भूलकर भी मत कहो कि अब पढ़ा जाता नहीं, 
उपदेश की दूसरी कड़ी, 
यह परीक्षा की घड़ी॥2॥ 
साल भर खाए-पीये, घूमे-फिरे मौजें मनाई, 
दिन गुजारा क़हक़हों में, रात को नींदिया लुभाई 
अब तो जागो बीता समय फिर लौटकर नहीं आता 
उपदेश की तीसरी कड़ी, 
यह परीक्षा की घड़ी॥3॥ 
दूसरी की नकल करके, तुम कभी लिखना नहीं, 
कर्म पर विश्वास रखना, भाग्य पर टिकना नहीं, 
सार गर्भित ही लिखो, ज़्यादा लिखा जाता नहीं, 
उपदेश की चौथी कड़ी, 
यह परीक्षा की घड़ी॥4॥ 
विध्न बाधाएँ तुम्हारे सामने भी आएंगी, 
बहुत-सी बाते तुम्हारी, आत्मा भरमायेंगी, 
सुख बिना छोड़े कभी, विद्या कोई पाता नहीं, 
उपदेश की पंचम कड़ी, 
यह परीक्षा की घड़ी॥5॥