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परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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परेशाँ है मेरा दिल, मेरी आँखें भी हैं नम कुछ-कुछ
असर-अन्दाज़ मुझ पर हो रहा है तेरा ग़म कुछ-कुछ
 
वो अरमाँ अब तो निकलेंगे, रहे जो मुद्दतों दिल में
ख़ुदा के फ़ज़्ल से चलने लगा मेरा क़लम कुछ-कुछ
 
ख़बर सुनकर मेरे आने की, सखियों से वो कहती है
ख़ुशी से दिल धड़कता है मोहब्बत की क़सम कुछ-कुछ
     
ज़रूरी तो नहीं है ख़्वाहिशें सब दिल की पूरी हों
मगर मुमकिन है, गर शामिल ख़ुदा का हो करम कुछ-कुछ
 
ज़मीं पर पाँव रखते भी, कभी देखा नहीं जिनको
हैं उनके पाँव में छाले, तो लरज़ीदा क़दम कुछ-कुछ
 
मेरे एहसास पर भी छा गई वहदानियत देखो
मुझे भी आ रही है अब तो, ख़ुशबू-ए-हरम कुछ-कुछ
 
क़रीब अपने जो आएगा, वो चाहे हो 'रक़ीब' अपना
मगर रक्खेंगे हम उसकी, मोहब्बत का भरम कुछ-कुछ