भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पर्णकुटीर / समीर बरन नन्दी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खो गए का चित्र और
डूब गए प्रेम का घाव

आज भी घास पर लिखता रहता हूँ

मेघ की खिड़की खोल कर -- कभी-कभी
वे दोनों मेरे पास आ बैठते हैं ।
हाल-चाल पूछने पर -- दोनों की आँखों से
मुझे एकान्त में छोड़ जाने पर आँसू बहने लगते हैं ।

स्वप्न में... बनाने में लगा रहता हूँ उनके लिए पर्णकुटीर ।