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पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़'

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पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया
रंग-ए-रूख़-ए-गुलिस्ताँ उड़ा दिया

वहशत में कै़द-ए-दैर-ओ-हरम दिल से उठ गई
हक़्क़ा कि मुझ को इश्क़ ने रस्ता बता दिया

फिर झाँक-ताक आँखों ने मेरी शुरू की
फिर ग़म का मेरे नालों ने लग्गा दिया

अँगड़ाई दोनों हाथ उठा कर जो उस ने ली
पर लग गए परों ने परी को उड़ा दिया

सीखी है उस जवान ने पीर-ए-फ़लक की चाल
हिर-फिर के मुझ को ख़ाक में आख़िर मिला दिया

वो सैर को जो आए तो सदक़े में उन को ‘बर्क़’
हर एक गुल ने ताइर-ए-निहकत उड़ा दिया