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पर्वत-राग / सिद्धेश्वर सिंह
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पहाड़ हँसते हैं
जब किसी आवारा बादल का
मासूम बच्चा
मेरी खिड़कियों के शीशे पर
दस्तक देता है ।
और पहाड़ रोते भी हैं
जब मैं देवदारु वन को देखते-देखते
तुम्हारे नाम की नज़्म लिखना
अक्सर भूल जाता हूँ ।