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पर्वत पर चढ़ कर / रमेश रंजक

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पर्वत पर चढ़कर
इतराने वाले भी कहते हैं
पर्वत चुप रहते हैं ।

कोई सड़क, सुरंग बनाए
कोई पूजे या गरियाए
लेकिन पौरुष का प्रस्तावन
क्षुद्र प्रहारक जान न पाए

ऐसे दुख-सुख सहज भाव से
               पर्वत ही सहते हैं...
               पर्वत चुप रहते हैं ।

रीझे गगन-गन्ध के ऊपर
इसीलिए कहलाए भूधर
बादल का दल, गल जाता है
जिसके रजत शिखर को छूकर

अपनी ऊँचाई से ऊँचे
               सत्यमेव जयते हैं...
               पर्वत चुप रहते हैं ।