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पर / मख़दूम मोहिउद्दीन

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घर के हर ज़र्रे से नासूर की बू आती है
        क़ब्र की ऊद<ref>चंदन</ref> की काफ़ूर की बू आती है ।
हम असीरों<ref>बंदियों</ref> की भी इक उम्र बसर होती है
        न तो मौत आती है हमदम न सहर होती है ।

शब्दार्थ
<references/>