भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पर / मख़दूम मोहिउद्दीन
Kavita Kosh से
घर के हर ज़र्रे से नासूर की बू आती है
क़ब्र की ऊद<ref>चंदन</ref> की काफ़ूर की बू आती है ।
हम असीरों<ref>बंदियों</ref> की भी इक उम्र बसर होती है
न तो मौत आती है हमदम न सहर होती है ।
शब्दार्थ
<references/>