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पलँगा बइठल हथ महादेओ, मचिया गउरा देई हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पलँगा बइठल हथ<ref>है</ref> महादेओ, मचिया गउरा<ref>गौरी</ref> देई<ref>देवी</ref> हे।
हमरा पुतरवा<ref>पुत्र</ref> के साध<ref>इच्छा</ref>, पुतर कइसे<ref>किस तरह</ref> पायब हे॥1॥
करबइ<ref>करूँगी</ref> मैं छठ<ref>षष्ठी व्रत, जिसका विशेष माहात्म्य कार्त्तिक शुक्ल षष्ठी और चैत्र शुक्ल षष्ठी में है।</ref> एतवार,<ref>रविवार</ref> सुरुज गोड़ लागब हे।
मिलि-जुलि पारथि<ref>मिट्टी के बने शिवलिंग</ref> बनायब, पुतर फल पायब हे॥2॥
कुरखेत<ref>जोता-कोड़ा खेत अथवा कुरुक्षेत्र तीर्थ</ref> मटिया मँगायब गंगाजल सानब<ref>सानना, मिट्टी को पानी देकर गूँधना</ref> हे।
काँसे कटोरिया पारथि बनायब, फल फूल लायब हे॥3॥
देबइन<ref>दूँगी</ref> हम अछत<ref>अक्षत</ref> चन्नन, अउरो बेल पातर<ref>बिल्वपत्र</ref> हे।
देबइन धतुरबा के फूल, भाँग घोंटि लायब हे॥4॥
करबइन मैं बरत परदोस<ref>प्रदोष व्रत, त्रयोदशी व्रत, जिसमें दिनभर उपवास किया जाता है तथा सायंकाल शिव की पूजा की जाती है।</ref> पुतर फल पायब हे॥5॥
एक पख<ref>पक्ष, महीने का अर्द्धभाग या 15 दिन</ref> पूजल, दोसर पख, तेसरे चढ़ि आयल हे।
पुरि गेल<ref>पूर्ण हो गया</ref> गउरा के मनकाम, पुतर फल पायब हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>