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पलँग ऊपर चाँदनी की जोत, मैं ना रे जानो / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पलँग ऊपर चाँदनी की जोत<ref>ज्योति</ref> मैं ना<ref>नहीं</ref> रे जानो<ref>जानता</ref>।
नइहर वाली लाड़ो<ref>लाड़ली दुलहन</ref> है अनमोल, मैं ना रे जानो।
अम्माँ पेयारी लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥1॥
टीका हो तो पलँगे पर पहनइहो<ref>पहनाना</ref>।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
नइहर वाली लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥2॥
बेसर हो तो पलँगे पर पहनइहो।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
भइया पेयारी लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥3॥
बाली<ref>कान का एक गोलाकार आभूषण</ref> हो तो पलँगे पर पहनइहो।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
अब्बा पेयारी लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥4॥
कँगन होतो पलँगे पर पहनइहो।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
अम्माँ पेयारी लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥5॥
अँगूठी हो तो पलँगे पर पहनइहो।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
अम्माँ पेयारी लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥6॥
सूहा<ref>लाल रंग की विश्ेाष प्रकार की छापेवाली साड़ी</ref> हो तो पलँगे पर पहनइहो।
पलँगे ऊपर चाँदी की जोत, मैं ना रे जानो।
नइहर वाली लाड़ो है अनमोल, मैं ना रे जानो॥7॥

शब्दार्थ
<references/>