भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पलट कर देख़ लेना जब सदा दिल की सुनाई दे / नक़्श लायलपुरी
Kavita Kosh से
पलट कर देख़ लेना जब सदा दिल की सुनाई दे
मेरी आवाज़ में शायद मेरा चेहरा दिख़ाई दे
मुहब्बत रौशनी का एक लमहा है मगर चुप है
किसे शमए-तमन्ना दे किसे दाग़े जुदाई दे
चुभें आँख़ों में भी और रुह में भी दर्द की किरचें
मेरा दिल इस तरह तोड़ो के आईना बधाई दे
खनक उठें न पलकों पर कहीं जलते हुए आँसू
तुम इतना याद मत आओ के सन्नाटा दुहाई दे
रहेगा बन के बीनाई वो मुरझाई सी आँख़ों में
जो बूढ़े बाप के हाथों में मेहनत की कमाई दे
मेरे दामन को बुसअत दी है तूने दश्तो-दरिया की
मैं ख़ुश हूँ देने वाले, तू मुझे कतरा के राई दे
किसी को मख़मलीं बिस्तर पे भी मुश्किल से नींद आए
किसी को नक़्श दिल का चैन टूटी चारपाई दे