Last modified on 19 नवम्बर 2014, at 13:37

पलाश को आनन्द मूर्ति जीवन के फागुन की / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

पलाश को आनन्द मूर्ति जीवन के फागुन की
आज इस सम्मान हीन की
दरिद्र वेला में दिखाई दी
जहाँ मैं साथी हीन अकेला हूं
उत्सव प्रांगण के बाहर
शस्यहीन मरुमय तट पर।
जहाँ इस धरणी के प्रफुल्ल प्राण कुंज से
आनाद्दत दिन मेरे
बहते ही जा रहे छिन्न वृन्त हो
वसन्त के शेष में।
फिर भी तो कृपणता नहीं तुम्हारे दान में,
यौवन का पूर्ण मूूल्य दिया मेरे दीप्तिहीन प्राण में,
अदृष्ट की अवज्ञा को नहीं माना -
मिटा दिया उसके अवसाद को;
जता दिया मुझे यह-
सुन्दर की अभ्यर्थना पाता मैं प्रतिक्षण,
पल पल में पाता हूं, नवीन का ही निमन्त्रण।

‘उदयन’
11 फरवरी, 1941