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पल-पल हो रही वार भूप या समय नहीं सै खोणे की / मेहर सिंह

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दिल्ली में मुगल बादशाह शाहजहां राज किया करते थे। उनके भूतपूर्व दरबारी ठाकुर अंगध्वज का लड़का चाप सिंह मुगल सेना में सिपहसालार केपद पर भर्ती हो गया। समय गुजरता गया कुछ ही अर्सा में राजपूत चाप सिंह अपनी कर्त्तव्यपरायणता तथा शूरवीरता के कारण मुगल दरबार में चर्चित हो गया। दूसरा सिपहसालार शेरखान जो बादशाह शाहजहां का साला था अन्दर ही अन्दर चाप सिंह से जलने लगा। वह किसी ऐसे मौके की तलाश में रहता था जब चाप सिंह को नीचा दिखाया जा सके परन्तु उसकी कोई भी योजना सफल नहीं हो पा रही थी और चाप सिंह दिन प्रतिदिन बादशाह का विश्वासपात्र बनता चला गया।

चाप सिंह की शादी सोमवती से हो जाती है। जब उसके गोणे की चिट्टी आती है तो वह छुट्टी लेने के लिए बादशाह शाहजहां के दरबार में पेश होता है और क्या कहता है-

राजा जी मैंने छुट्टी दे दे चिट्ठी आगी गोणे की
पल-पल हो रही वार भूप या समय नहीं सै खोणे की।टेक

मात पिता ने चिन्ता भारी अपनी बेटी धी की
सोमवती मेरी बाट जोंहवती जणू मोर पपीहा मींह की
पढ़ते ए चिट्ठी हुया उमंग में मेरी चाही होगी जी की
तरी दया तैं राजा जी म्हारै ज्योत बळैगी घी की
किस्मत के मेरे द्वार खुले आज घड़ी नहीं जंग झोणे की।

एकले का के जीणा जग में कोए मत एकला रहियो
मेल किसी ना चीज जगत में धर्म कै उपर मरियो
पंद्राह दिन की अर्ज करुं सूं दया मेरे पै करियो
जा बेटा सुसराड़ डिगर ज्या हंस कै एक बै कहियो
के बैरा या बाण छूटज्या खुद रोटी टुकड़ा पोणे की।

याणे के मां-बाप मरे मनै सूना छोड़ छिगरगे
जग परळो में कसर रही ना गम के बादळ घिरगे
बिगड़ी का ना कोए बणया हिमाती दूर किनारा करगे
दयावान और यार समझ कै तेरे सुपर्द करगें
घड़ी मिली सै आज आनन्द की दाग जिगर के धोणे की।

बिन बालम की गौरी का तै फिकाए बाणा हो सै
आच्छी भूण्डी कह कै उस तै पाप कमाणा हो सै
साज बाज बिना मेहर सिंह तेरा न्यूं के गाणा हो सै
ड्यूटी द्यूं सरकारी मनै तेरा हुकम बजाणा हो सै
बांद्य बिस्तरा चाल पड़या ली टिकट कटा बरोणे की।