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पल पल, छिन छिन उड़ता रहता मन चंचल / उर्मिल सत्यभूषण

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पल पल, छिन छिन उड़ता रहता मन चंचल
एक जगह कब टिक कर बैठा मन चंचल

पल में तोला, पल में माशा फितरत है
हंसते हंसते रोने लगता मन चंचल

भावों का जमघट है इसके साथ कभी
और कभी है तन्हा तन्हा मन चंचल

भोगी, जोगी, रोगी बनकर रहता वो
कोई न इसका ठौर ठिकाना मन चंचल

शायर बनकर सूरज से जब होड़ करे
उससे भी आगे हो आता मन चंचल

मन के हारे हार हमारी, सुन उर्मिल
जीते हम, गर हमने जीता मन चंचल