भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पवित्र हो व्यवहार / अर्चना कोहली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घूमते विषधर देश में, फैले घर भी नाग।
नहीं सुरक्षित नार है, इज़्ज़त पर अब दाग॥
छिड़ा महाभारत सदा, घर-घर में है युद्ध।
भाई-भाई सब लड़ें, अपनों पर हैं क्रुद्ध॥

कलुषित सबके मन हुए, करें गरल का पान।
जायदाद पर दृष्टि है, संकट में अब जान॥
वृद्धाश्रम सब हैं भरें, करते हम अपमान।
उठता उनपर हाथ है, टूटे उनका मान॥

भरना मन संस्कार जब, उत्तम तब आचार।
मर्यादित जब लोग हों, पवित्र हो व्यवहार॥
सब ईर्ष्या का अंत हो, खिलते हृदयाकाश।
रामराज्य होगा तभी, खिलते चित्त पलाश॥