परेशान है इन दिनों
उलटे पैरों वाला शैतान
चबाता रहता है मायूसी से
नींद में भी अपना निचला होंठ
क्योंकि नहीं खौफ रहा उसका अब धरती पर कोई!
दे दी है पटखनी
कुछ सीधे पैरों वाले इंसानों ने
इस आखिरी मुकाबले में भी उसे
बेबस हो जब-तब
दांतों से चबा उठता है नाखून अपने
उफ़ कि नहीं पहचान सकता
चेहरा अपने उस्ताद का
और आखिर आजिज़ आ
मुक़र्रर कर ली है सज़ा
उसने खुद अपने लिए
कुछ सफेदपोशो के दरबार में अब
हर सुबह ओ शाम
सिर झुकाकर ठोंकता है सलाम