भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पसीना तक नहीं आता, तो ऐसी ख़ुश्क तौबा क्या / यगाना चंगेज़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पसीना तक नहीं आता, तो ऐसी ख़ुश्क तौबा क्या?

नदामत वो कि दुस्मन को तरस आ जाये दुश्मन पर॥


उस तरफ़ सात आसमाँ और इस तरफ़ इक नातवाँ।

तुमने करवट तक न ली दुनिया को बरहम देख कर॥


खु़दा जाने अज़ल को पहले किस पर रहम आयेगा?

गिरफ़्तारे क़फ़स पर या गिरफ़्तारे नशेमन पर॥