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पहचान औरत की / भारती पंडित


उसे छूने दो उम्मीदों का अनंत आसमान
वह उड़ना चाहती है.
उसे दो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
वह बोलना चाहती है.
उसे दो विश्वास का संबल
वह कुछ कर गुजरना चाहती है .
उसे झांकने दो अंतर्मन में
वह स्वयं से साक्षात्कार करना चाहती है.
उसे लहराने दो सफलता के परचम
क्यूंकि केवल माँ ,पत्नी,बेटी ही नहीं
वह एक पहचाना नाम बनना चाहती है.