भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहचान औरत की / भारती पंडित
Kavita Kosh से
उसे छूने दो उम्मीदों का अनंत आसमान
वह उड़ना चाहती है.
उसे दो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
वह बोलना चाहती है.
उसे दो विश्वास का संबल
वह कुछ कर गुजरना चाहती है .
उसे झांकने दो अंतर्मन में
वह स्वयं से साक्षात्कार करना चाहती है.
उसे लहराने दो सफलता के परचम
क्यूंकि केवल माँ ,पत्नी,बेटी ही नहीं
वह एक पहचाना नाम बनना चाहती है.