भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहचान / केशव
Kavita Kosh से
दुनिया और वक़्त में
लोग जीते हैं---
उथले और बौने लोग
अपनी साधारणता के साथ
जिसमें फँसे हैं वे
कीचड़ में धँसे लदे हुए ट्रक की तरह
उन्हें जो क़रीब लाता है एक दूसरे के
वह न उनका सुख है न दुख
उनका अकेलापन है
अपने साथ न रह सकने की
असुरक्षा है
जो हर वक़्त रहती है उनके भीतर
खड़े पानी की तरह
और जो वास्तव में आदमी हैं
वे सम्बन्धित नहीं वक़्त या दुनिया से
क्योंकि वे अपने साथ हैं सदा
साथ होना अपने
करता है उन्हें साधारणता से मुक्त
और वे दूरबीन की तरह
आँखों से लगाए ज़िन्दगी
पहचान लेते हैं मौत का चेहरा
सम्बन्धित हैं असल में जिससे वे