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पहचान / हरगोविन्द सिंह

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फिरै फिपयानौं रोज, बारा मैंड़े भाँड़ रहो
हुलिया पै हीन भाव जैसें करो पाप है,
गरब, गरूर, चालबाजी-भरी बातें सुन
पियत कुनैन कैसौ घूँट चुप्पचाप है,
जन्म-तिथी, बंस-बेल, रूप-रंग, कारबार,
कहाँ कैसौ मोल-भाव, बस एइ जाप है,
जेके ऐसे हालचाल देखौ निज देस बीच
बिना कहैं जान लेव बिटिया कौ बाप है।