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पहला प्यार ही होता है अन्तिम भी / महेश सन्तोषी

पहला प्यार ही शायद होता है अन्तिम भी।

बीच में तो सिर्फ प्यार को दोहराते हैं लोग,
हर जगह बने रहते हैं पहले प्यार के पहरे
चेहरों के अंदर दिखते हैं,
किसी के पुराने चेहरे।

जो ज़िन्दगियों की दोपहरियों में आये
पर सांझ तक साथ नहीं चले
दिल के किसी हिस्से में रहते हैं स्थित ठहरे।
एक पूरी की पूरी उम्र भी फिर मिला नहीं पाती
रूठे हुए नक्षत्रों के योग,
पहला प्यार ही शायद होता है अन्तिम भी...

सैकड़ों सपनों के एक साथ सच होने का आभास,
वह फिर पांव में सिमटी धरती,
वह बांहों में सिमटता आकाश,
पहले समर्पण का असीम सुख,
सिहरते शब्दों के सम्वाद
बार-बार नहीं आते धरती
और आकाश पास-पास।

आजीवन यादों में बिछ कर रह जाते हैं,
सांसों के सांसों में पहले अनुरोध,
पहला प्यार ही शायद होता है अन्तिम भी...
एक बार बिछड़ जाये,
तो फिर देखने तक को नहीं मिलता कोई,
कौन जानता है किसने कहाँ तक रास्ते ढोये,
प्यार ढोया, जिन्दगी ढोई।
हमें कोई बराबर देखता तो है
अतीत के उजालों से कब रोशनियों के लिये अंधेरे रोये?
कब अंधेरों के लिये रोशनियाँ रोईं?
सांसों की सरहदों तक
साथ-साथ चलते हैं
कुछ उजली यादें कुछ उजले संजोग,
पहला प्यार ही शायद होता है अन्तिम भी....