पहला मिलन / हरे प्रकाश उपाध्याय
बोलना-बताना तो खैर मुश्किल है
गर उन अनुभवों के बारे में लिखा जाएगा
तो शायद बहुत कम लिखा जाएगा
शब्द बहुत धोखा देंगे
शरमाएंगे मुंह छिपाएंगे मुस्काएंगे
उन अनुभवों में आंधी ही ऐसी कि निर्लज्ज शब्द उड़ि-उड़ि जाएंगे
किसी नदी किनारे वे बैठेंगे
बस याद करेंगे उन बातों को
उनके पाँवों में जल होगा
बहुत पवित्र होकर नहीं लिखे जाएंगे
वे ब्यौरे
वे पैदल चलकर आएँगे उनके पाँवों में धूल होगी
उनकी आत्मा में साँसों की गर्मी होगी
हाथों का पसीना होगा
बहुत देहगंध भरी होगी उधम मचाती सी
उनके भीतर उलाहनों की थकान होगी
तमाम संशय होंगे उसमें आगे-पीछे के
तुम कहती हो- कहो
कुछ तो कहो
कहने में मौन भरा है
मौन इतना वाचाल हुआ है
तुम कहती हो कहो
मैं कहता हूँ तुम सुनती हो
मैं नहीं कहता हूँ तुम सुनती हो
मैं तुम्हारी शरारतों की कविता खूब समझता हूँ
पहली मुलाकात थी हमारी वह
तुम क्या-क्या सुनना चाहती हो समझता हूँ मैं
पर कैसे कहूँ प्रिय उन बातों को
उन बातों में इतनी आग
शब्द भला जल न जाएँगे...
जो जिया उसे शब्दों में तो जिया नहीं
साँसों में स्पर्श में मौन में
तुम्हारे भय के पर्दे में मेरे संकोच में
कितना अद्भुत था वह समय
जो बीतता था तो बुरा लगता था
मगर उस समय में बैठे कैसा लगता था
उसे किसी शब्द में कहूं तो कैसे कहूं
बेजुबानी बहुत उन यादों की
उन्हें देख रहा हूं दोनों पलकों से नजरें अपनी ढांपे
सुन रहा हूँ अपने रक्त में उन्हें टहलते हुए
कहना जुबान से उसे असत्य हो जाएगा
पाप लगेगा जाने कितना
तमतमाया था तुम्हारा चेहरा
पता नहीं वह क्या कहता था
तुम्हारी आँखों में इतना रस था
मैं पीता जाता था
तुम देती जाती थी
उसमें नशा बहुत था
तेरी हथेली मेरी हथेली पर बैठी
मैना सी बोले जाती थी
भाषा नहीं थी उसके पास
हकलाती थी वह भावों में
त्वचा भी सुनती है आँखें भी सुनती हैं
पहली बार तब जाना मैंने
उन हाथों में उन अंगों की यादें हैं
जो बातें हैं
वे सांसों की बातें हैं
उन यादों में तेरे होठों की हलचल है
साँसें जब बोलती हैं तो और कोई नहीं बोलता
यह अनुशासन है गजब
दिमाग सोचने का काम त्याग बस सुनता है
बताओ भला
इस स्मृति के ब्यौरे कैसे दिए जाएँ
हमारे आगे क्या है
हमारे पीछे क्या था
इन बातों में क्या बातें हैं
आगे की जो बातें हैं वे इतनी आगे हैं
कि इन बातों से उन बातों का
उन बातों से इन बातों का कोई मेल-मिलाप नहीं
हाँ,
सुनो जहां गए हम वहां अब न जाएंगे
उन यादों के सहारे अपने को भरमाएंगे
उसकी अपूर्वता ही हमारा जीवन धन होगा
उससे जीवन का व्यापार चलाएँगे...
क्या कहती हो
इतनी मुस्काती क्यों हो...