पहली बूँदें / अंजना वर्मा
पहली बूँदें बारिश की जो
आईं मन कचनार हुआ
भींंगा मन का कोना-कोना
महक उठा गुलज़ार हुआ
खाली-खाली मटके थे
पनघट पर सन्नाटा था
सूखे-प्यासे कंंठों ने
तड़प-तड़प दिन काटा था
इंतजार की रेखा टूटी
जलमय जग-संसार हुआ
पोखर-ताल उदास हुए थे
लुटे पथिक के जैसे
पानी का धन खोकर किसको
देते क्या वे कैसे?
आसमान की दौलत पा
गड्ढा भी साहुकार हुआ
शोलों के शरबत को पीकर
आयी हैं बौछारें
और-और कह पानी पीकर
वनपाखी गुंजारेंं
पत्ते-पत्ते में, घासों में
जीवन का संचार हुआ
कैद हुआ सूरज मेघों की
कोमल दीवारों में
अंगारों के दिन बदले अब
भींगे भिनसारों में
सूरज की तानाशाही पर
वर्षा का अधिकार हुआ
कैसे बतला दूँ मतवाला
मन कैसा हो जाता है
बूँदों के घुंघरू के संग
मुरली मधुर बजाता है
बरसातों के दिन अब आये
हर दिन ही त्यौहार हुआ