भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहलोॅ खण्ड / सीता / विद्या रानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगजननी के कहौं कहानी,
जखनी बनली छेलै सीता रानी,
धरती सें जनमली राजा घर पलली,
हुनकोॅ तेॅ छै अद्भुत कहानी ।

जग माता केना कोखोॅ सें ऐतै,
विधाता नें विधान बनैलकै ।
ऋषि मुनि के रुधिर घट सें,
सुकुमारी सिया उत्पन्न होलै ।

जेन्हैं जनक कन ऐलै माता,
सौंसे ऐश्वर्य उहाँ पहुँची गेलै ।
जगजननी सीता के सेवा में
देवता, यक्ष, किन्नर सब ऐलै ।

छोटोेॅ-छोटोॅ पांव आरू छोटोॅ पैजनियां,
झुनमुन झुनमुन चलै सीता मैया !
झुमुर-झुमुर चलि सभै के देखाबै,
माता, पिता, परिजन, सब सुख पावै ।

बाल सीता केना झूमै छै,
माता पिता मिली मुख चूमै छै ।
हँसी, खेली केॅ कूदी-कूदी केॅ,
राजभवन में किलकारी गूंजै छै !

सीता, उर्मिला, श्रुतिकीर्ति, मांडवी,
चारो बहिन साथें रहै छेलै ।
संग संग हंसवोॅ संग-संग खेलवोॅ
माता-पिता के अति सुख देवोॅ ।

जनक के अंगना में जगमाय छेलै,
चारो के चारो कन्या रत्न हरदम ।
जनक सुनयना कीर्ति ध्वज श्रुत ध्वज,
नयन सुख पावै छेलै क्षण-क्षण ।

जौं जौं बढ़ि रहली छेली सीता
सुन्दर-सुन्दर सुकुमार हाथोॅ सें ।
पिता केरोॅ काज करि दै छेलै,
माता के हाथ बटाय दै छेलै ।

हुनकोॅ सुन्दर रूप आरू कार्य देखि,
चकित रहै छेलै मिथिला वासी
राजा जनक के सबटा बेटी
सभै के सुख पहुंचावै छेलै ।

एक दिन ऐन्होॅ अचंभा होलै,
पूजा घर में सीता गेलै ।
देखलकै शिव धनुष गरदैलोॅ
सोचलकै साफ करी दौ ।

पूजा घर लीपेॅ लागली सीता
एक हाथ सें लीपतें गेली,
दोसरोॅ हाथोॅ सें धनुष उठैलकी,
तखनिये ही आवि गेलै राजा ।

देखी सीता केॅ धनुष उठैलेॅ
एक्के हाथोॅ सें पकड़ी लेलेॅ,
अचरज सें भरी गेलै जनक
जगजननी केॅ साक्षात देखलकै ।

हमरोॅ सुकुमारी सिया हे गे माय,
एत्तेॅ बड़ोॅ धनुष केना लेलकै उठाय,
एक्के हाथोॅ सें उठैलेॅ छै
केना करि एना करनें छै ।

अरे बेटी, इ की करलौ,
शिवधनुष केॅ उठाय लेलौ ।
तोरा भारी नै लगलौं
केना करी इ करतब करलौ ।

सीता की कहेॅ पारतियै,
हुनका तेॅ कुछु नै लगलै,
आपने जगदम्बा स्वरूप छेलै,
कुछु नै अचरज होलै ।

मनेमन सोचलकोॅ जनक
इ पुत्राी शक्तिरूपा छै
जे नर; इ धनुष उठावेॅ पारतै
ओकरे सें बियाह करवै ।

तिल-तिल क्षण-क्षण काल चलै,
धीरें-धीरें सीता बढ़ै ।
किशोरावस्था के पहले ही
सीता परम सुन्दर बनी गेलै ।

कोनो काम ऐन्होॅ नै छेलै,
जे सीता नै करेॅ पारै
सर्व गुण संपन्न बेटी देखी केॅ,
जनक दम्पति सुख सें भरै ।

सीता तेॅ पुनीता छेली,
पवित्रा आरू बुद्धि शीला
सभै केॅ सुख देबै में
छेली परम निपुण शीला ।

एही रं बढ़तें बढ़तें,
ऊ दिन भी आवि गेलै,
सीता विवाह योग्य होलै ।
माता-पिता हरषित होलै ।

राखि देलकै जनक राज नें
सीता स्वयंवर केरोॅ दिन
सभै जगह संदेश भेजलकौ,
नर मुनि, राक्षस, किन्नर ।

विश्वामित्रा जंगल में छेलोॅ,
राम-लक्ष्मण दुनु भाय के संग ।
पीड़क राक्षस केॅ मारै लेॅ
राजा सें मांगी आनलेॅ छेलै ।

राम लक्ष्मण दुनु भाय,
गुरु आज्ञा के पालन करै छेलै,
मुनि यज्ञ के रक्षा करै लेॅ
तीर-धनुष धारण करै छेलै ।

पावि केॅ जनक के संदेश
मुनि मिथिला जाय लेॅ ठानलकै,
संग लै केॅ दुनु भाय केॅ
जनक राजा कन चली देलकै ।

एकरे बिच में सुन्दरी सीता,
गौरी पूजेॅ जाय छेलै पुनीता ।
भेंटि गेलै नारद भगवान ।
सीता नें करलकै परनाम ।

दै केॅ आशीष नारद करलकै,
‘‘हे सीता तोरोॅ वर आबि रहलोॅ छै ।
‘‘केना करि पहचानवै हम्में’’
सीता नें हाथ जोड़ि कहलकै ।

‘‘जेकरा देखि केॅ मोहित होवौ
वही तोरोॅ वर होथौं ।
देखियो तोहें विचारी
जल्दिये स्वयंवर होथौं ।

‘‘गिरिजा माता सें मांगी लेॅ
मनोॅ के अनुकूल वर के वरदान,
सब आशीष पावी जैवौ,
सब अच्छा करथौं भगवान ।’’

भगवानोॅ के की कहियै
हुनिये तेॅ लीला करवे करै छै ।
सीता वियाह के पीछू में,
हुनकोॅ भी स्वारथ छेलै ।

राक्षसो के संहार करे लेॅ,
सीता केॅ कारण बनना छेलै,
देवलोकोॅ के उद्देश्य सें,
राम सीता वियाह होना छेलै ।

सब तेॅ सब होइये रहलोॅ छेलै,
पुष्पवाटिका में रामोॅ केेॅ देखलकै,
हुनकोॅ सुन्दर रूप देखि केॅ
सीता तेॅ मोहित होय गेलै ।

मतरकि धनुष भंग के प्रण
याद करी सीता भ्रमित छेलै ।
है कोमल शरीर राम,
केना धनुष तोड़े पारतै ।

जनक बाबा के कुछु नै बुझैलै,
कैहने ऐहनोॅ प्रण ठानलकै,
की होतै के जानेॅ पारेॅ
नारद मुनि के वचन सत्य हुएॅ ।

हमरा तेॅ कुछु नै कहना छै,
जे विधि करै सभै सहना छै
पिता प्रण के रक्षा हुएॅ ।
कुछु बात नै मन में धरना छै ।

के भविष्य के जानेॅ पारै छै,
वेद पुराण सभै उचारै छै
माता-पिता के कहना मानोॅ
जीवन के तेॅ यही तारै छै ।

कुंद बुद्धि करी रहली सीता,
भाग्य भविष्य पर छोड़लकी,
राम के पति रूप में पावै लेॅ
गिरिवर राज किशोरी मनैलकी ।

राजा जनक तेॅ जनके छेलोॅ
जे ठानलकै से करवे करतियै
के छेलै जे हुनका हुनकोॅ
प्रण सें हटावेॅ पारतियै ।

जखनी स्वयंवर के दिन ऐलोॅ,
राजभवन में भरि गेलोॅ ।
चारो दिस के राजा-राजकुमार,
राक्षस समाज, यक्ष, किन्नर ।

सब सीता के पावै लेॅ,
मन क्रम सें छेलोॅ तैयार,
बल-बुद्धि विद्या सें भरलोॅ छेलै,
शक्ति सें भरलोॅ छेलोॅ अपार !

सिय सुकुमारी सखि संग छेली,
मन धड़कै छेलै आँख उदास
के धनुष केॅ तोड़ेॅ सकै छेॅ,
केकरो पर नै छेलै विश्वास ।

पुष्पवाटिका में राम के देखी,
सुख पैलकी सीता संग सखी,
समझी गेलै सखी सनी
सीता प्रेमवश होली छै ।

रामोॅ के छवि मनोॅ में धरि
सीता नें आँख मूंदि लेलकै
मनेमन हुनकोॅ धियान करी केॅ,
आत्म सुख पावि लेलकै ।

पुरानोॅ प्रेम उमड़ि केॅ ऐलै,
औचके ही आकर्षण बढ़लै
रामोेॅ सीता देखी केॅ कहलकै
लक्ष्मण रुनझुन कहां होय छै ।

ई तेॅ कामदेव केरोॅ ध्वनि
रं सुनाय पड़ी रहलोॅ छै
फेनू सीता केॅ देखी कहलकोॅ
यहेॅ जनकदुलारी के स्वयंवर छै ।

राम-सीता केरोॅ प्रथम मिलन
पुष्पवाटिका में ही होलोॅ छेलै
दुनू आनन्द में डूबी गेलोॅ छेलै
फेनू समय विचारी संपत होलोॅ छेलै ।

जखनी सीता गिरिजा लुग गेली
आपनोॅ मनोरूप पति मांगलकी
गिरिजा ने हार गिराय आशीर्वाद देलकै
सीता मनेमन खुश होय गेली ।

स्वयंवर भवन में राजा सिनी केॅ देखी
सभै देवी देवता मनावै छेलै सीता
हे भगवान, केन्हौं केॅ
ई सब धनुष नै तोड़ेॅ पावै ।

राम केरोॅ धनुष तोड़ै के कल्पना करी
सीता के शरीर भुटकी जाय छेलै
फेनू धनुष के कठोरता विशालता देखी
डरोॅ सें मन संकुचित रही जाय छेलै।

हे भगवान, जखनी राम धनुष तोड़ै
ओकरोॅ भार तोहें उठाय लियोॅ
धनुष हल्का करी केॅ राखियौ
राम केॅ सफल बनाय दियौ ।

हृदय धुकचुक आँख डबडब छेलै
सीता केरोॅ मोॅन हदसी रहलोॅ छेलै
ई संसारोॅ में मन माफिक काम
केना हुएॅ पारते हे भगवान ।

हमरा की, हमरा तेॅ आज्ञा पालन करना छै
कुछु हुएॅ, पिता के वचन पर ध्यान धरना छै
जौंने तोड़तै धनुष ओकरे गल्ला में
जाय माला पिन्हाय देना छै ।

एक क्षण ऐना सोचै सीता, दोसरोॅ क्षण
सौंसे ध्यान राम पर लागी जाय छेलै
राम बिना कोय ने तोड़ै धनुष
एकरोॅ की कोय नै उपाय छेलै ।

कहाँ कठोर धनुष कहाँ कोमल राम
जेना कोय फूलोॅ सें हीरा छेदै लेॅ सोचै
जनक भी तेॅ हदास होय्ये गेलोॅ छेलै
वीरविहीन धरा केरोॅ घोषणा करी देलकै ।