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पहाड़ की औरतें - 1 / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
महानगर की
सबसे ऊँची इमारत से
ज्यादा ऊँचे होते हैं पहाड़
और उनमें चढ़ने के लिए
न तो लिफ्ट होती है
न ही सीढ़ियाँ
फिर भी चलती हैं औरतें
हर रोज
सिर में कपड़ा
और कमर में दरांती बाँधे
उन्होंने भी फतह की हैं कई चोटियाँ
पर
ऊँचाई में उगी हरी जिन्दगी को समेटे
वे लौट आती हैं
बिना अपना झण्डा लगाए...