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पहुँच के बाहर / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
मति यहीं है, गति यहीं है, द्युति यहीं है,
अति यहीं है, अति यहीं है
इधर आओ, पंथ मेरा सबसे बढ़िया
इसे अपना भी बनाओ।
क्यों सुनू मैं बत-पिसानी, क्यों करूँ मैं गप-कुटानी
खेत लह-लह हुलस रहा है
मित्र नभ में बिहस रहा है
बाट ताक रहे हैं बच्चे, तोड़ने दो साग बथुआ
जो कहीं अन्यत्र गाओ।