भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच कविताएँ / वेरा पावलोवा / मणिमोहन मेहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

काश ! जान पाती कि किस भाषा में
तुम्हारा, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
अनूदित हुआ है,

काश !
मैं मूल तक पहुँच पाती,

शब्दकोष की मदद लेती
यह सुनिश्चित करने के लिए
कि ठीक ढंग से भाव अभिव्यक्त हुआ है

और अनुवादक ने
कोई ग़लती नहीं की है।

2

चमको, राज करो
और जीत लो यह दुनिया।

जी नहींं, शुक्रिया
मैं इस प्रवृत्ति के ख़िलाफ़ हूँ ।

जितना मैं लोगों से प्रेम करती हूँ
उतना ज़्यादा
मैं सीखती हूँ अपने एकान्त से प्रेम करना —

अनचीन्ही राहों पर
दूर तक भटकना , कुछ तलाशना

बतियाना बादलों से
तुम सब कितने ख़ूबसूरत हो।

3

गिरा देना

गिरना
इतनी ऊँचाई से
इतने लंबे समय तक

हो सकता है
अब मेरे पास
बहुत वक्त होगा

उड़ना
सीखने के लिए।

4

एक तनी हुई
रस्सी पर चलती हूँ

दोनों हाथों में
एक-एक बच्चा

संतुलन के लिए।

5

और ईश्वर ने देखा
यह अच्छी थी

और आदम ने देखा
यह बेजोड़ थी

और हव्वा ने देखा
बस ठीक-ठाक थी।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणिमोहन मेहता