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पाँच शेर / फ़ानी बदायूनी

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हाँ ऐ यक़ीनेवादा! दामन तेरा न छूटे।

यह आसरा न टूटे वो आयें या न आयें॥


दिल में आते हुए शरमाते हैं।

अपने जलवों में छुपे जाते हैं॥


नामहरबानियों का गिला तुझ से क्या करें।

हम भी कुछ अपने हाल पै अब महरबाँ नहीं॥


तसकीन<ref>चैन</ref> अजीब चाहता हूँ।

दुश्मन का नसीब चाहता हूँ॥


ग़म भी गुज़श्तनी<ref>नाशवान</ref> है ख़ुशी भी गुज़श्तनी।

कर ग़म को अख़्तयार कि गुज़रे तो ग़म न हो॥


शब्दार्थ
<references/>