भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच सुपारी बाँटु री, अब नेवतब कुल-परिवार, लालजी के मूरन हे / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पाँच सुपारी बाँटु<ref>बाँटो</ref> री, अब नेवतब<ref>न्योता दूँगी, निमंत्रित करूँगी</ref> कुल-परिवार, लालजी के मूरन हे।
पाँच सुपारी बाँटु री, मोरे अलख हुलरुए<ref>दुलारा</ref> के मूरन हे॥1॥
अब बम्हना बसे जे बनारस, अब हजमा कुरखेत<ref>कुरुक्षेत्र</ref> लालजी के मूरन हे।
ए सवासिन<ref>परिवार की लड़कियाँ, बहन, बेटी आदि</ref> बसे ससुर घर, अब किन<ref>कौन</ref> रे परिछेबाल<ref>परिछनेवाली। मुंडन, उपनयन और विवाह संस्कार के अवसर पर स्त्रियों द्वारा किसी द्रव्य को हाथ में लेकर बच्चे या दुलहे के माथे से छुआकर सम्पन्न किया जाने वाला एक लोकाचार को परिछन कहते हैं।</ref> लालजी के मूरन हे॥2॥
अब बम्हना के चिठिया पेठाइय, अब हजमा के पकरि मँगाइय, लालजी के मूरन हे।
ए सवासिन के डोलिया फनाइय<ref>पालकी पर चढ़ाकर ले जाना</ref> उहे रे परिछेबाल, लालजी के मूरन हे॥3॥
नव मन गेहुँमा<ref>गेहूँ</ref> मँगाइय, अब नेवतब कुल परिवार, लालजी के मूरन हे।
नव मन घिआ<ref>घृत</ref> मँगाइय, अब नेवतब कुल परिवार, लालजी के मूरन हे॥4॥
नव थान<ref>लगभग</ref> कपड़ा मँगाइय, हम नेवतब सब परिवार, लालजी के मूरन हे।
पहिला अस्तुरा नउआ फेरिय, हमर लाल उठल छिहुलाय<ref>दर्द से बेचैन होकर चौंक उठना</ref> लालजी के मूरन हे॥5॥
दूसरा अस्तुरा नउआ फेरिय, हमर लाल उठल छिहुलाय, लालजी के मूरन हे।
तीसरा अस्तुरा नउआ फेरिय, हमर लाल उठल छिहुलाय, लालजी के मूरन हे॥6॥
चउथा<ref>चतुर्थ</ref> अस्तुरा नउआ फेरिय, हमर लाल उठल छिहुलाय, लालजी के मूरन हे।
हजमा के लुलुहा<ref>कलाई तक का भाग</ref> कटाइय, नउनिया के देहु बनवास, लालजी के मूरन हे॥7॥
पँचमा अस्तुरा नउआ फेरिय, हमर लाल उठल छिहुलाय, लालजी के मूरन हे।
हजमा के सोनवा गढ़ाइय, नउनिया के लहरापटोर<ref>गोटा-पाटा जड़ी रेशमी साड़ी</ref> लालजी के मूरन हे॥8॥

शब्दार्थ
<references/>