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पाँव तक हाथ जब पहुँचता है / कैलाश झा 'किंकर'

पाँव तक हाथ जब पहुँचता है।
मुँह से आशीष तब निकलता है॥

जब बुजुर्गों की दुआ है मिलती
शख़्स तब फूलता है फलता है।

बेअदब जो है सुख नहीं पाता
बस अदावत में वक़्त ढलता है।

जिसने माता-पिता कि सेवा की
उसका जीवन बहुत सँवरता है।

चार दिन की है ज़िन्दगानी ये
फिर भी अभिमान क्यों मचलता है।