पांच सीढ़ियां / अशोक चक्रधर
बौड़म जी स्पीच दे रहे थे मोहल्ले में,
लोग सुन ही नहीं पा रहे थे हो-हल्ले में।
सुनिए सुनिए ध्यान दीजिए,
अपने कान मुझे दान दीजिए।
चलिए तालियां बजाइए,
बजाइए, बजाइए
समारोह को सजाइए !
नहीं बजा रहे कोई बात नहीं,
जो कुछ है वो अकस्मात नहीं।
सब कुछ समझ में आता है,
फिर बौड़म आपको जो बताता है
उस पर ग़ौर फरमाइए फिलहाल-
हमारी आज़ादी को पचास साल
यानि पांच दशक बीते हैं श्रीमान !
उन पांच दशकों की हैं
पांच सीढ़ियां, पांच सोपान।
इस दौरान
हम समय के साथ-साथ आगे बढ़े हैं,
अब देखना ये है कि
हम इन पांच सीढ़ियों पर
उतरे हैं या चढ़े हैं।
पहला दशक, पहली सीढ़ी-सदाचरण
यानि काम सच्चा करने की इच्छा,
दूसरा दशक, दूसरी सीढ़ी-आचरण
यानि उसके लिए प्रयास अच्छा।
तीसरा दशक, तीसरी सीढ़ी-चरण
यानि थोड़ी गति, थोड़ा चरण छूना,
चौथा दशक, चौथी सीढ़ी-रण
यानि आपस की लड़ाई
और जनता को चूना।
पांचवां दशक, पांचवीं सीढ़ी बची-न !
यानि कुछ नहीं
यानि शून्य, यानि ज़ीरो,
लेकिन हम फिर भी हीरो।