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पाकलोॅ फोॅल / नवीन ठाकुर ‘संधि’

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जेठ अखार रोॅ पड़तै पानी, खजूर जामुन पकै छै भरखर,
भोर होतै ओड़िया डलिया लैकेॅ, बुतरू लगाय छै दरबर।

आम जामुन खजूर बीछी-बीछी केॅ,
वैं खाय छै चूसी-चूसी केॅ।
तीनोॅ गिरै छै मतुर समय होय छै फरोॅक,
रात-दिन गिरै छै आम पावी केॅ हवा झरोक।
तीनोॅ होय छै गुट्ठीदार खटमीट्ठोॅ रसगर,

खजूर जामुन गिराय छै, दिनभर आदमी कौआ मैंना,
आम गिराय छै दोली-दोली हरदम जहिनां।
कत्तेॅ होय छै है सब्भै लेली उलफा धोन,
बच्चा-बुतरू की बड़कौ रोॅ दौड़ै छै मोॅन।
आबेॅ तेॅ बगीचा बेची केॅ "संधि" होय लागलै धरफर।