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पागलपन / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
मेरे
घर के पास
खडा वृक्ष
तेज हवा का
बहाना बनाकर
रोज चुमता है
घर की छत को।
साथ में
गिरा देता है
कुछ पत्ते व फूल
मेरे घर की
छत पर।
मैंने
उससे पूछा,
भाई
ऐसा रोज-रोज
क्यों करतें हो?
उसने कहा
अरे!
भूल गए आप
जब काट रहे थे
कुछ लोग मुझे
शहर के
सौन्दर्यकरण के नाम पर
तब तुम्हीं ने
रोका था उन्हें।
बहुत
लडे थे तुम
परेशान भी
बहुत रहे थे
लिपट गए थे
मेरे तने से।
फिर लोगों ने
मुझे छोड दिया
यह कह कर
कौन कह कर
कौन माथा मारे
इस पागल से।
तुम्हारा
यह पागलपन
मुझे
बहुत प्यारा लगा