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पागल / पूनम सूद
Kavita Kosh से
वह जो पागल फिरता है न गलियों में
ज़ोर-ज़ोर से बोलता,
कहकहे लगाता हुआ,
उसके दिमाग में छेद है;
कहते हैं मोहल्ले वाले
अक्सर सोचता हूँ
अपने दिमाग में एक सुराख
मैं भी बना लूं
कुछ बोझ टपक कर कम हो,
कुछ हवा मिले दिमाग को,
और दिमाग हल्का हो जाये
फिर
शायद, मैं भी कुछ बोल सकूं
इतनी ज़ोर से कि दूसरा सुन सके
मेरे कहकहे भी सुनें वो
जिन्होंने आज तक मुझे देखा नहीं
मोहल्ले में