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पाजेब की झनकार से निकली वह गीतिका / रंजना वर्मा
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पाजेब की झनकार से निकली वह गीतिका
हर ओर मेरे गूँजती रहती वह गीतिका
खनके थे जो कंगन तभी थिरके थे पाँव भी
दिल ने सुनी थी प्यार से प्यारी वह गीतिका
ओढ़ी चुनर थी माथ पर बिंदिया भी थी सजी
काजल में मेरी आँख के मचली वह गीतिका
मेंहदी रची थी प्यार की था साथ हमसफ़र
जब थरथराये होंठ थे सिहरी वह गीतिका
आँसू भरे थे आँख में पलकें झुकी झुकी
सहला गयी हौले से मुझे थी वह गीतिका