भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाठक से ! / बाद्लेयर / अभिषेक 'आर्जव'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मूढ़ता, गलतियां, लीचड़ता, पाप
किए आवृत्त हमारी आत्मा को ,
शिराओं में भरते लिजलिजापन
पालते हैं हम अपना नपुंसक प्रायश्चित्त
ठीक वैसे ही जैसे सड़क का भिखारी
रखता है अपने नपुंसक पिस्सुओं को !

हमारे कुत्सित पापों के हैं क्षीण पश्चाताप,
लेकर सत्य निष्ठा की शपथ हर बार
हम करते हैं और व्यग्रता से नए पाप
मानकर की मक्कार आसुओं से धुलेंगे हमारे दाग !

अपनी जगह पर कुंडली मारे बैठा है जादूयी दैत्य
फेंक कर भ्रम-जाल हमारी बंधुआ आत्मा पर
अपने काले-जादू से सोख लेता है सारा सत्व !

प्रतिपल प्रतिपग चहुँओर हमारे दैत्य का साया है
हर कुत्सित अमार्जित वस्तु में सुख हमने पाया है,
घिसटते हैं हम हर रोज नर्क में थोड़ा और आगे
अनाक्रान्त अविचलित नरक की सड़ांध से !

दरिद्र लम्पट जैसे चूसता चूमता है
किसी अधेड़ वेश्या के नोचे गए पिलपिले वक्ष वैसे ही,
हम मौक़ा पाते ही भोग लेते हैं तुच्छ नीच वर्जित सुख
यूँ कि किसी सूखे संतरे को हम मसल लेते हैं !

गहरे अंदर करोड़ो बजबजाते कीड़ो -कृमियों की तरह
एक दैत्य गणराज्य हमारे मस्तिष्क में करता है सतत उत्पात
जब हम सांस लेते हैं हमारे फेफड़ो तक पसरती है मौत
दुःख भरे क्रन्दनों की अदृश्य धारा में आवृत !

नरसंहार दंगे हत्या बलात्कार अगर अभी तक
हमारे सुख का हिस्सा नहीं हुए हैं
नहीं बने हैं हमारे भाग्य का अंग
तो मात्र इसलिए की नहीं है हमारी शिराओ में इतना दम !

सब सियार तेंदुए भेड़िए,
बन्दर बिच्छु गिध्द सांप
सब चीखते-बलबलाते-सरकते जानवर
जैसे हमारे अंतस की अनेक बुराईयों की समग्र आवाज !

किन्तु एक जंतु जो है सबसे ज्यादा फरेबी और मक्कार,
बिना किसी दिखावे के शोरगुल के
वह स्वेच्छया कर सकता है पूरी धरती तबाह
निगल सकता है एक ही झटके में अखिल विश्व !

वह है बोरियत --
आँखों मे मादकता,
दीखते चमकते आंसू लिए, हुक्का पीते
सपने देखते, हलकी सी मुस्कान लिए
मेरे प्रिय साथी ! मेरे पाखंडी पाठक !
निश्चित तौर पर तुम उसे जानते हो  !

अंगरेज़ी से अनुवाद : अभिषेक 'आर्जव'