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पाथरक देवी / कालीकान्त झा ‘बूच’

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जीवन मे फेर नहि घुरि क' आब'बला -
ओहि सभ घड़ीक संस्मरण
सत्यरहितो सगरो शरीरक शोणित केँ
गरमबैत अछि ह्रदयमे आ
धैर्यक ढाकन केँ लगैत अछि
ढकढकब'
उड़ैत अछि छिटका अदहनक आ
पड़ैत अछि ढलढल फोँका-
मोनपर!
स्मरणक भुड़की सँ देखैत छी
एकटा वासंती साँझ
भनसा मे तरुए तरैतकाल
अयलाह अपने सी. एम . कॉलेजसँ
चापहि टा सुनल की -
धड़क' लागल छल करेज
कछमछाक' हुलाशक बिड़रो मे-
ससरि गेल छल सोहक आँचर
वश नहि रहल
छोट छीन छोलनी पर
आ तरुआ जड़ल की -
जराठीक गन्ह सँ थितिकेँ आँकि क'
दीदी द' देने छलीह टिप्पणी -
गय दाइ आजुक कनियाँ कलजुगही !
छक द' लागल छल ई बात
नोन जेना लगैछ घाउ मे
छत्तीस बरखक बाद -
आइ हमहूँ भ' गेल छी बुढ़िया
हुनके सन झुनकुट झनकट आ झगड़ाहु
अपन नवकी कनियाँ सँ
लड़ैत छी ओहिना -
लगैत अछि नीक मुदा
ओकर मूनल मुस्की जे
दुतियाक चान भ' चमकैछ "बच्चा" पर
चून सन चेहरा क' -
नैन जुड़बैत छी !
दीदी ,
पाथरक देवी !!
जाधरि रहलीह फुटिते रहल कपार आ
होइते विसर्जित रहि गेल पीड़ी पर -
ममताक मुरुझल निरमाल