भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी-पानी रे / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
मन के बढ़लऽ ई बाढ़े की
की नै करै मनमानी रे
उछली-कूदी अड्डा तोड़ै
सगठें पानी-पानी रे।
केकरऽ घर नै करै छै सूनऽ
बाल्हैं-बच्चा टानी रे
केकरा कहाँ-कहाँ लै डूबै
छोड़ै नै कोय निशानी रे।
जोशे रंगें रंगै जवानी
होश भला की जानी रे
ऐत्हैं होश नशा जब टूटै
झलकै पानी, पानी रे।
यहऽ जवानी रंग रंगै जो
की नै रचै कहानी रे
जे पानी नै जानै जवानी
जिनगी पानी, पानी रे।